सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act)
भारत के संसद द्वारा पारित एक कानून है जो 12 अक्तूबर, 2005 को लागू हुआ (15 जून, 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। जम्मू एवं काश्मीर मे यह जम्मू एवं काश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतरगत लागू है।
1. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 27 फरवरी 2004 को अर्जी दी. कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं अर्थात् मेरी अर्जी किस अधिकारी पर कब पहुंची, उस अधिकारी पर यह कितने समय रही और उसने उतने समय क्या किया?
2. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड 10 दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था. हांलांकि अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
3. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जायेगी? वह कार्रवाई कब तक की जायेगी?
4. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जायेगा?
साधारण परिस्थितियों में, ऐसी एक अर्जी कूड़ेदान में फेंक दी जाती. लेकिन यह कानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है. अब ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना आसान नहीं होगा.
पहला प्रश्न है- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं.
कोई उन्नति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह कागज़ पर गलती स्वीकारने जैसा होगा.
अगला प्रश्न है- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया.
यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति काफी सतर्क होता है. इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है.
लेकिन मानिये यदि आपने आरटीआई से किसी भ्रष्टाचार या गलत कार्य का पर्दाफ़ाश किया है, आप सतर्कता एजेंसियों, सीबीआई को शिकायत कर सकते हैं या एफ़आईआर भी करा सकते हैं. लेकिन देखा गया है कि सरकार दोषी के विरुद्ध बारम्बार शिकायतों के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं करती. यद्यपि कोई भी सतर्कता एजेंसियों पर शिकायत की स्थिति आरटीआई के तहत पूछकर दवाब अवश्य बना सकता है. हांलांकि गलत कार्यों का पर्दाफाश मीडिया के जरिए भी किया जा सकता है. हांलांकि दोषियों को दंड देने का अनुभव अधिक उत्साहजनक है. लेकिन एक बात पक्की है कि इस प्रकार सूचनाएं मांगना और गलत कामों का पर्दाफाश करना भविष्य को संवारता है. अधिकारियों को स्पष्ट सन्देश मिलता है कि उस क्षेत्र के लोग अधिक सावधान हो गए हैं और भविष्य में इस प्रकार की कोई गलती पूर्व की भांति छुपी नहीं रहेगी. इसलिए उनके पकडे जाने का जोखिम बढ जाता है.
आईये कुछ आंकडे लें. दिल्ली में, 60 से अधिक महीनों में 120 विभागों में 14000 अर्जियां दाखिल हुईं. इसका अर्थ हुआ कि 2 से कम अर्जियां प्रति विभाग प्रति माह. क्या हम कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ गई? तेज रोशनी में, यूएस सरकार को 2003- 04 के दौरान आरटीआई अधिनियम के तहत 3.2 मिलियन अर्जियां प्राप्त हुईं. यह उस तथ्य के बावजूद है कि भारत से उलट, यूएस सरकार की अधिकतर सूचनाएं नेट पर उपलब्ध हैं और लोगों को अर्जियां दाखिल करने की कम आवश्यकता होनी चाहिए. लेकिन यूएस सरकार आरटीआई अधिनियम को समाप्त करने का विचार नहीं कर रही. इसके उलट वे अधिकाधिक संसाधनों को इसे लागू करने में जुटा रहे हैं. इसी वर्ष, उन्होंने 32 मिलियन यूएस डॉलर इसके क्रियान्वयन में खर्च किये.
दूसरा, आरटीआई लोकतंत्र के लिए बहुत जरुरी है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है. जनता की सरकार में भागीदारी से पहले जरुरी है कि वे पहले जानें कि क्या हो रहा है. इसलिए, जिस प्रकार हम संसद के चलने पर होने वाले खर्च को आवश्यक मानते हैं, आरटीआई पर होने वाले खर्च को भी जरुरी माना जाये.
"लोगों को केवल अपने बारे में सूचना मांगने दी जानी चाहिए. उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं दी जानी चाहिए", पूर्णतः इससे असंबंधित है:
आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो.
आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो.
भारत के संसद द्वारा पारित एक कानून है जो 12 अक्तूबर, 2005 को लागू हुआ (15 जून, 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। जम्मू एवं काश्मीर मे यह जम्मू एवं काश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतरगत लागू है।
सूचना के अधिकार पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
- सूचना का अधिकार क्या है?
- यदि आरटीआई एक मौलिक अधिकार है, तो हमें यह अधिकार देने के लिए एक कानून की आवश्यकता क्यों है?
- सूचना का अधिकार कब लागू हुआ?
- सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं?
- सरकार से कुछ भी पूछे या कोई भी सूचना मांगे.
- किसी भी सरकारी निर्णय की प्रति ले.
- किसी भी सरकारी दस्तावेज का निरीक्षण करे.
- किसी भी सरकारी कार्य का निरीक्षण करे.
- किसी भी सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले.
- सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं?
- "वित्त पोषित" क्या है?
- क्या निजी इकाइयां सूचना के अधिकार के अर्न्तगत आती हैं?
- क्या सरकारी दस्तावेज गोपनीयता कानून 1923 सूचना के अधिकार में बाधा नहीं है?
- क्या पीआईओ (PUBLIC INFORMATION OFFICER) सूचना देने से मना कर सकता है?
- क्या अधिनियम विभक्त सूचना के लिए कहता है?
- क्या फाइलों की टिप्पणियों तक पहुँच से मना किया जा सकता है?
- मुझे सूचना कौन देगा?
- अपनी अर्जी मैं कहाँ जमा करुँ?
- क्या इसके लिए कोई फीस है? मैं इसे कैसे जमा करुँ?
- मुझे क्या करना चाहिए यदि पीआईओ या सम्बंधित विभाग मेरी अर्ज़ी स्वीकार न करे?
- क्या सूचना पाने के लिए अर्ज़ी का कोई प्रारूप है?
- मैं सूचना के लिए कैसे अर्ज़ी दूं?
- मैं अपनी अर्ज़ी की फीस कैसे दे सकता हूँ?
- स्वयं नकद भुगतान द्वारा (अपनी रसीद लेना न भूलें)
- डाक द्वारा:
- डिमांड ड्राफ्ट से
- भारतीय पोस्टल आर्डर से
- मनी आर्डर से [केवल कुछ राज्यों में]
- कोर्ट फीस टिकट से [केवल कुछ राज्यों में]
- बैंकर चैक से
- कुछ राज्य सरकारों ने कुछ खाते निर्धारित किये हैं. आपको अपनी फीस इन खातों में जमा करानी होती है. इसके लिए, आप एसबीआई की किसी शाखा में जा सकते हैं और राशि उस खाते में जमा करा सकते हैं और जमा रसीद अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ लगा सकते हैं. या आप अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ उस विभाग के पक्ष में देय डीडी या एक पोस्टल आर्डर भी लगा सकते हैं.
- क्या मैं अपनी अर्जी केवल पीआईओ के पास ही जमा कर सकता हूँ?
- क्या करूँ यदि मैं अपने पीआईओ या एपीआईओ का पता न लगा पाऊँ?
- क्या मुझे अर्जी देने स्वयं जाना होगा?
- क्या सूचना प्राप्ति की कोई समय सीमा है?
- क्या मुझे कारण बताना होगा कि मुझे फलां सूचना क्यों चाहिए?
- क्या पीआईओ मेरी आरटीआई अर्जी लेने से मना कर सकता है?
- इस देश में कई अच्छे कानून हैं लेकिन उनमें से कोई कानून कुछ नहीं कर सका. आप कैसे सोचते हैं कि ये कानून करेगा?
- क्या अब तक कोई जुमाना लगाया गया है?
- क्या पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि प्रार्थी को दी जाती है?
- मैं क्या कर सकता हूँ यदि मुझे सूचना न मिले?
- पहला अपीलीय अधिकारी कौन होता है?
- क्या प्रथम अपील का कोई प्रारूप होता है?
- क्या मुझे प्रथम अपील की कोई फीस देनी होगी?
- कितने दिनों में मैं अपनी प्रथम अपील दायर कर सकता हूँ?
- क्या करें यदि प्रथम अपीली प्रक्रिया के बाद मुझे सूचना न मिले?
- द्वितीय अपील क्या है?
- क्या द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप है?
- क्या मुझे द्वितीय अपील के लिए फीस देनी होगी?
- मैं कितने दिनों में द्वितीय अपील दायर कर सकता हूँ?
- यह कानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है?
एक उदाहरण
आइए नन्नू का मामला लेते हैं. उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था. लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत अर्जी दी, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया. नन्नू ने क्या पूछा? उसने निम्न प्रश्न पूछे:1. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 27 फरवरी 2004 को अर्जी दी. कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं अर्थात् मेरी अर्जी किस अधिकारी पर कब पहुंची, उस अधिकारी पर यह कितने समय रही और उसने उतने समय क्या किया?
2. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड 10 दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था. हांलांकि अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
3. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जायेगी? वह कार्रवाई कब तक की जायेगी?
4. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जायेगा?
साधारण परिस्थितियों में, ऐसी एक अर्जी कूड़ेदान में फेंक दी जाती. लेकिन यह कानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है. अब ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना आसान नहीं होगा.
पहला प्रश्न है- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं.
कोई उन्नति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह कागज़ पर गलती स्वीकारने जैसा होगा.
अगला प्रश्न है- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया.
यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति काफी सतर्क होता है. इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है.
- मुझे सूचना प्राप्ति के पश्चात् क्या करना चाहिए?
लेकिन मानिये यदि आपने आरटीआई से किसी भ्रष्टाचार या गलत कार्य का पर्दाफ़ाश किया है, आप सतर्कता एजेंसियों, सीबीआई को शिकायत कर सकते हैं या एफ़आईआर भी करा सकते हैं. लेकिन देखा गया है कि सरकार दोषी के विरुद्ध बारम्बार शिकायतों के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं करती. यद्यपि कोई भी सतर्कता एजेंसियों पर शिकायत की स्थिति आरटीआई के तहत पूछकर दवाब अवश्य बना सकता है. हांलांकि गलत कार्यों का पर्दाफाश मीडिया के जरिए भी किया जा सकता है. हांलांकि दोषियों को दंड देने का अनुभव अधिक उत्साहजनक है. लेकिन एक बात पक्की है कि इस प्रकार सूचनाएं मांगना और गलत कामों का पर्दाफाश करना भविष्य को संवारता है. अधिकारियों को स्पष्ट सन्देश मिलता है कि उस क्षेत्र के लोग अधिक सावधान हो गए हैं और भविष्य में इस प्रकार की कोई गलती पूर्व की भांति छुपी नहीं रहेगी. इसलिए उनके पकडे जाने का जोखिम बढ जाता है.
- क्या लोगों को निशाना बनाया गया है जिन्होंने आरटीआई का प्रयोग किया व भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया?
- तब मैं आरटीआई का प्रयोग क्यों करुँ?
- ये रणनीतियां क्या हैं?
- क्या लोग जन सेवकों का भयादोहन नहीं करेंगे?
- क्या सरकार के पास आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ जायेगी और यह सरकारी तंत्र को जाम नहीं कर देगी?
आईये कुछ आंकडे लें. दिल्ली में, 60 से अधिक महीनों में 120 विभागों में 14000 अर्जियां दाखिल हुईं. इसका अर्थ हुआ कि 2 से कम अर्जियां प्रति विभाग प्रति माह. क्या हम कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ गई? तेज रोशनी में, यूएस सरकार को 2003- 04 के दौरान आरटीआई अधिनियम के तहत 3.2 मिलियन अर्जियां प्राप्त हुईं. यह उस तथ्य के बावजूद है कि भारत से उलट, यूएस सरकार की अधिकतर सूचनाएं नेट पर उपलब्ध हैं और लोगों को अर्जियां दाखिल करने की कम आवश्यकता होनी चाहिए. लेकिन यूएस सरकार आरटीआई अधिनियम को समाप्त करने का विचार नहीं कर रही. इसके उलट वे अधिकाधिक संसाधनों को इसे लागू करने में जुटा रहे हैं. इसी वर्ष, उन्होंने 32 मिलियन यूएस डॉलर इसके क्रियान्वयन में खर्च किये.
- क्या आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में अत्यधिक संसाधन खर्च नहीं होंगे?
दूसरा, आरटीआई लोकतंत्र के लिए बहुत जरुरी है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है. जनता की सरकार में भागीदारी से पहले जरुरी है कि वे पहले जानें कि क्या हो रहा है. इसलिए, जिस प्रकार हम संसद के चलने पर होने वाले खर्च को आवश्यक मानते हैं, आरटीआई पर होने वाले खर्च को भी जरुरी माना जाये.
- लेकिन प्राय
- लोग निजी मामले सुलझाने के लिए अर्जियां देते हैं?
- लोगों को ओछी/ तुच्छ अर्जियां दाखिल करने से कैसे बचाया जाए?
- फाइल टिप्पणियां सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह ईमानदार अधिकारियों को ईमानदार सलाह देने से रोकेगा?
- जन सेवक को निर्णय कई दवाबों में लेने होते हैं व जनता इसे नहीं समझेगी?
- सरकारी रेकॉर्ड्स सही आकार में नहीं हैं. आरटीआई को कैसे लागू किया जाए?
- विशाल जानकारी मांगने वाली अर्जियां रद्द कर देनी चाहिए?
"लोगों को केवल अपने बारे में सूचना मांगने दी जानी चाहिए. उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं दी जानी चाहिए", पूर्णतः इससे असंबंधित है:
आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो.
आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो.
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